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क्योंकि भारत में - ऐसा प्रेम अपराध है। वो परेशान हो गया - फिर उसने अपनी मां को बताया,  
फिर मां ने पिता को बताया और पिता फट पड़े। वो उन्हें समझाने के लिए घर गया, पर बात नहीं बनी -  
क्योंकि भारत में कोई शादी करना चाहे, तो लोग उसके परिवार की पांच सौ पुश्तें .. जांचते हैं  
(हँसी)। वे उस व्यक्ति के वंश की  शुद्धता देखते हैं - जिससे आपकी 
शादी होगी। तो, "अमेरिका की एक गोरी महिला,  आप उससे कैसे शादी कर सकते हैं? हम उसका वंश नहीं 
जानते! वो कहाँ से आई है? उसका वंश क्या है?"  दादादादा… तो, वो समझा नहीं पाया और वापस आ गया, 
और उसे फिर से प्यार हो गया, और वे आगे बढ़ गए। 
तब शंकरन पिल्लई अपने बेटे को त्यागकर बोले  - "मेरा तुमसे कोई लेना-देना नहीं है।  
फिर साल बीते, उनका एक बेटा हुआ, और उनके उसकी तब की तस्वीर थी,  
जब वो पैदा हुआ था, और पत्नी रोजाना अपने छोटे बेटे की तस्वीर फेसबुक पर अपलोड करती थी – छोटा सा बच्चा  
बड़ा हो रहा था! वो बेटे को त्याग चुका था, पर पोते की बात अलग होती है!  
धीरे-धीरे, एक, दो साल में उसे इस छोटे  बच्चे से प्रेम हो गया, जिसे उसने देखा 
नहीं था। फिर लोग अमेरिका से उसके पास आने लगे  "अरे, आपको अपने पोते को नहीं देखा! ओह! आप उसे 
ज़रूर देखिये – वो आपके जीवन का फल है। ” " धीरे-धीरे उसे इच्छा हुई। फिर  
उसने तय किया, वो अपने बेटे का  चेहरा नहीं देखेगा, पर अमेरिका जाकर 
सिर्फ पोते को देखेगा। और उस गोरी औरत  को तो बिल्कुल नहीं देखेगा (हँसी)।
फिर वो अमेरिका गया, और उसे एक ऊर्जावान युवा लड़का  मिला। वे एक फार्म में रह रहे थे। वो यहाँ-वहाँ 
कुछ करता रहता था। उसे इस छोटे साथी से गहरा प्रेम  हो गया। फिर एक दिन वो लड़का बोला, "दादाजी, 
आओ, मैं आपको तीरंदाजी दिखाता हूँ! ” वो उस लड़के के साथ फार्म में गया, और  
वहाँ उसने आठ लक्ष्य देखे, वे  सभी तीर बिल्कुल निशाने पर थे। 
शंकरन पिल्लई ने ये देखकर सोचा - अरे, ये मेरा पोता  है। "उसे भारत के सभी महान तीरंदाज़ याद आ गए - 
अर्जुन और एकलव्य! ... और उसे भविष्य दिखा -  ओलंपिक स्वर्ण पदक आसमान से गिर रहे थे। फिर उसने 
पूछा, "तुमने कहाँ से तीर चलाया?" लड़का  बोला, “बीस गज से। " "क्या? बीस गज  
की दूरी से, तुमने सभी तीर निशाने पर मारे हैं! तुमने ये कैसे  
किया?" फिर लड़के बोला, "दादाजी,  मैं तीर पहले मारता हूँ, और फिर निशान 
बना देता हूँ (हँसी)। ” " तो,  
(हंसते हुए) सफलता से जुड़े ये ख्याल, रुकावट बन  सकते हैं। और मैं लगातार ऐसे लोगों के साथ रहा 
हूं, वे एक हद तक सफलता पा चुके हैं - पर उनका  जीवन, उनकी सफलता की सोच के ढाँचे में फिट नहीं हो 
रहा है, और वो ढांचा टूट रहा है, पर  उन्हें लगता है कि कुछ गलत है। कुछ गलत  
नहीं है, वे बस बेहतर हो रहे हैं। 
स्थितियां उन्हें आगे बढ़ा रही हैं। पर उनके ख्याल  टूट रहे हैं, तो वे अपनी सफलता से दुखी हैं। आपको कई 
लोग, ऐसी चीजों से गुजरते हुए दिखाई देंगे। अगर  सफलता की बात करें, तो मुझे यकीन है कि आपके पास 
योजनाएं होंगी, कि जीवन में सफल कैसे होना है।  हम्म? आपकी योजनाएँ हैं? योजना अच्छी होकर भी एक 
उलझन हो सकती है, क्योंकि आप आज जो  जानते हैं उसी से योजना बनाते हैं। 
योजना, किसी अनजान चीज़ पर आधारित नहीं होती।  आपकी योजना यानि - आज को बढ़ा-चढ़ाकर, कल की 
कल्पना करना। अभी, आप यहाँ एक स्तर पर हैं। आपकी  योजना ये होती है कि ये इतने वर्षों में दस गुना 
होना चाहिए, या सौ गुना या लाख गुना हो जाए। पर  योजना यानि - आज की स्थिति को बढ़ा-चढ़ाकर की गई 
कल्पना। शायद इसके पीछे कोई तर्क हो, शायद आप उससे  
जुड़ी चीज़ें समझते हों, पर मूल रूप से, आप आज को ही बढ़ा-चढ़ाकर कल्पना करते हैं। यानि कई मायनों में वे  
सभी संभावनाएं खत्म हो जाती हैं, जो अभी आपके अनुभव में नहीं हैं। आपने पेन्सिलवेनिया की बाढ़ के  
बारे में सुना? पेंसिल्वेनिया  में बाढ़ आती है, आपको पता 
है? एक बार एक बड़ी बाढ़ आई और एक शहर में पानी  इतना ऊपर उठा, कि घर डूबने लगे। तो, दो छोटे लड़के 
अपने घर की छत पर चढ़कर बैठे थे। और फिर  उन्होंने अपने घर के सामने एक टोपी को  
ऊपर-नीचे होते देखा। 
एक ने पूछा, "वो टोपी ऊपर-नीचे क्यों  हो रही है?” दूसरा बोला, "चिंता  
मत करो। वो मेरे पिताजी हैं। कल उनका मेरी माँ से झगड़ा हुआ था,  
और उन्होंने प्रण लिया था, 'नरक या  ऊँचा पानी, मैं लॉन ज़रूर काटूँगा!' 
(हँसी)। तो, योजनाएं परेशानी बन  सकती हैं। योजनाएं बनाना अच्छा है,  
पर ज़्यादा ज़रूरी ये है - कि एक उद्देश्य हो।
अगर उद्देश्य है, तो योजनाएं बनती जाएंगी, योजनाएं  फेल होंगी और फिर नई योजनाएं बनेंगी। जो होना है 
होगा – पर आप एक उद्देश्य पर टिके रहे, तो बाकी  चीज़ें उस उद्देश्य की मदद करेगी। पर अगर आप किसी 
योजना पर टिके रहेंगे, तो वो योजना खुद एक  रूकावट बन सकती है। योजना संभावना भी है। 
योजनाएं बनाना ठीक है, पर उन्हें खुद से थोड़ा दूर  रखना चाहिए। योजना से अपनी पहचान मत जोड़िये। हर 
एक इंसान ... सभी इंसान सफल होना चाहते हैं। आप  उसे प्रज्वलित करके, उसे जुनून बना सकते हैं। पर 
अगर सफलता आपकी ज़रूरत बन जाए, वरना आप दुखी  होंगे, तो आप एक बड़ी परेशानी की ओर बढ़ रहे हैं। 
हमारे जूनून जहर बन सकते हैं...अगर हम उन जुनूनों  के सफल न होने पर, नाराज होने लगें, तो। ज़हर बनने 
से मेरा मतलब है - कि आज ये दिखाने के लिए काफ़ी  मेडिकल और वैज्ञानिक सबूत हैं कि नाराज़ होने 
पर…जब आप किसी चीज़ से गुस्सा होते हैं, या चिडचिडे  होते हैं, तो आज डॉक्टर चेक कर सकते हैं.. हम 
आपका खून लेकर ये दिखा सकते हैं कि आप अपने सिस्टम  में जहर डाल रहे हैं। ये वे जहर हैं, जो आप पीते 
हैं, पर दूसरे के मरने की उम्मीद करते  हैं (कुछ हंसी)। जीवन ऐसे नहीं चलता। 
आप जहर पीयेंगे, तो आप मरेगें - यही ठीक है (हंसते  हुए)। यही ठीक है, है ना? आप ज़हर पीयें, तो आपको 
मरना चाहिए। "मैं जहर पीकर, उसे  मारना चाहता हूँ" ऐसा नहीं होता।  
तो, ऐसी भावनाएं हमारी क्षमता ..को 
छीन लेती हैं। देखिए, इंसान में  प्रतिभा नाम की एक चीज होती है। 
हर इंसान में होती है... वो उसे  जीवन में कभी न कभी छूता है।  
पर प्रश्न ये है कि आप उसे कितनी बार छूते हैं? - यही प्रश्न है। उसे  
जीवन में एक बार छूना काफी नहीं है।  आपको उसे हमेशा छूते रहना चाहिए, है ना? 
प्रतिभा क्या होती है? इसे समझने  के कई तरीके हैं। पर सबसे आसान  
तरीका ये है कि हम हमेशा तार्किक विचारों को ही बुद्धि मानते हैं। 
नहीं। तार्किक विचार शायद अगले पच्चीस वर्षों में  बेकार हो जाएगा, क्योंकि तब शायद आपका कंप्यूटर हर 
तरह के तार्किक विचार पैदा करने के काबिल हो  जाएगा – आपसे कहीं बेहतर और कहीं ज़्यादा तेज़। तो, 
प्रतिभा को छूना यानि - अपने अंदर मौजूद बुद्धि  का दूसरा आयाम छूना। आपने नाश्ते में क्या खाया? 
प्रतिभागी: चिकन और सलाद। सद्‌गुरु: देखिए, उन्होंने मुर्गी खाई।  
दोपहर होते-होते वो मुर्गी एक इंसान  में बदल गई है। अगर आप चार्ल्स 
डार्विन से पूछते कि एक मुर्गी इंसान  कितने समय में बनती है, तो वे लाखों  
वर्षों की बातें करते। यहाँ, ये दोपहर में ही मुर्गी को इंसान में बदल  
रहे हैं। तो, यहाँ एक बुद्धि और क्षमता  है, जो प्रकृति के लाखों वर्षों के 
काम को - दोपहर से शाम तक ही कर सकती है। बस ये है कि ये बुद्धि अचेतन स्थिति में  
है। अगर कोशिश की जाए, तो आप  हर अचेतन प्रक्रिया को, एक 
सचेतन प्रक्रिया में बदल सकते हैं। चेतनता में,  अगर इस बुद्धि की एक बूंद भी आपको मिल जाए, तो 
अचानक जीवन एक जादू की तरह चमक उठेगा। जो काम  लोग मुश्किल से करते हैं, वो आपके लिए आसान 
होगा। अब जब मैं बुद्धि कहता  हूं, तो लोग हमेशा ये सोचते हैं।
अगर में लोगों से पूछों कि बुद्धि  कहाँ हैं, तो सभी ... हमेशा यही  
कहेंगे (इशारों में), है ना? वे ये (इशारों) या ये (इशारों) या ये (इशारों) या ये (इशारों) नहीं  
कहेंगे। पर आपके शरीर की एक कोशिका, आपके दिमाग से कहीं ज़्यादा काम कर रही है। डीएनए का एक अणु, एक  
मिनट में इतने लाखों काम कर रहा है कि आप कभी समझ ही नहीं सकते। हाँ या ना? तो योग में, या योग  
विज्ञान में, हम कभी भी किसी चीज को मन नहीं मानते, मन जैसी कोई चीज नहीं होती। 
एक भौतिक शरीर है और एक मानसिक शरीर है। तो  शरीर से सोचना से सीखना होगा। ये एक छोटा सा 
सेशन है। अभी ये बातें नहीं करनी चाहिए, पर ये बताना  ज़रूरी है। कई चीजें हैं, जो मैं खुद एक ही समय में 
करता हूं। क्योंकि कोई मुझे  
बताता है... अभी, इस सत्र पहले कोई कहता है,  "सद्गुरु, इस इमारत की योजना बनानी है" 
क्योंकि हम सबकुछ खुद करते हैं। अब यहाँ से जाने से  पहले, मेरा बिल्डिंग प्लान तैयार होगा, वो अभी यहीं 
बनेगा - क्योंकि मेरे दिमाग में  बारह से चौदह चैनल वाकई चलते  
रहते हैं। सिर्फ दिमाग में नहीं, शरीर से भी सोचा जा सकता है। आप शरीर से सोचना सीख लें, तो कभी  
सिरदर्द नहीं देगा, ये सबसे अच्छी बात है (हँसी)। इतनी जिम्मेदारियां हैं और कई चीज़ें एक साथ चल रही  
हैं, तो क्या तनाव नहीं होता? बिलकुल नहीं होता, क्योंकि एक गहरे आयाम का इस्तेमाल हो रहा  
है - और सभी कर सकते हैं, ये आयाम सभी में है। शायद आपके तर्क का स्तर, किसी दूसरे से कम हो।  
सभी की तार्किकता अलग-अलग होती है। पर हर इंसान भोजन को पचा पाता है। यानि आपमें बुद्धि का  
एक और आयाम है, हाँ? अगर कोई व्यक्ति ऐसी स्थिति 
बनाए, कि सिस्टम के अंदर जो भी है, वो उसके लिए  उपलब्ध हो, तो ऐसे व्यक्ति का सफल होना तय है।